कोंडागांव. छत्तीसगढ़ के कोंडागांव के आदेश्वर पब्लिक स्कूल में पढ़ने वाले कक्षा दसवीं के छात्र प्रियांशु कोराम (16 वर्ष) ने गुरुवार शाम को अपने घर के बाथरूम में आत्महत्या कर ली. घटना गोलावंड निवासी प्रियांशु के बंधापारा स्थित घर पर हुई. छात्र स्कूल ड्रेस पहने हुए और स्कूल बैग लेकर घर पहुंचा था. यह घटना परिवार और स्कूल के बीच गहरी चिंता और सवाल खड़े कर रही है. अभिभावकों को इस ओर ध्यान देना होगा.
प्राप्त जानकारी के अनुसार, प्रियांशु छात्रावास में रहता था और रोज स्कूल बस से स्कूल जाता था. गुरुवार शाम, स्कूल से लौटते समय वह छात्रावास के बजाय घर पहुंचा, जहां उसकी भतीजी मौजूद थी. प्रियांशु ने खाना मांगा, लेकिन घर में खाना न होने के कारण भतीजी ने उसके लिए मेगी बनाई. खाना खाने के बाद उसने कपड़ा धोने का बहाना किया और बाथरूम में चला गया. काफी देर तक बाहर न निकलने पर जब भतीजी ने दरवाजा खटखटाया, तो कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.
दरवाजा तोड़कर देखा गया, तो प्रियांशु फांसी के फंदे पर लटका हुआ पाया गया. परिजन तुरंत उसे बाहर निकालकर बचाने का प्रयास करते रहे, लेकिन तब तक वह बेहोश हो चुका था. सूचना मिलने पर पुलिस मौके पर पहुंची और छात्र के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा. प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि प्रियांशु स्कूल ड्रेस में ही घर पहुंचा था और उसका बैग भी पास ही रखा हुआ मिला.
छात्रावास प्रबंधन ने बताया कि प्रियांशु शांत स्वभाव और पढ़ाई में होशियार छात्र था. गुरुवार को वह स्कूल गया था, लेकिन स्कूल से वापसी के दौरान वह चार बजे स्कूल बस से घर जाने के लिए उतर गया. इस अप्रत्याशित घटना से प्रबंधन और शिक्षक वर्ग भी स्तब्ध हैं. छात्र के आत्महत्या करने के कारणों पर सवाल उठ रहे हैं, जिन्हें जानने के लिए पुलिस गंभीरता से जांच कर रही है.
पुलिस का कहना है कि फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि आत्महत्या का कारण क्या था. परिवार, छात्रावास और स्कूल प्रबंधन के बयान दर्ज किए जा रहे हैं. प्रियांशु के शांत और मेहनती स्वभाव के चलते आत्महत्या का यह कदम कई सवाल खड़े करता है. पुलिस ने मोबाइल फोन, बैग और घटनास्थल के अन्य साक्ष्यों को कब्जे में लेकर जांच तेज कर दी है. इस घटना से क्षेत्र में शोक और चिंतन का माहौल है.
भावनाओं को समझना जरूरी
इस घटना ने एक बार फिर बच्चों की मानसिक स्थिति और उन पर पड़ने वाले दबाव की ओर ध्यान आकर्षित किया है. आज के समय में पढ़ाई, प्रतियोगिता और सामाजिक अपेक्षाओं का दबाव बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डालता है. अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों से नियमित बातचीत करें, उनकी समस्याओं और भावनाओं को समझने का प्रयास करें. बच्चों को इस बात का विश्वास दिलाना बेहद जरूरी है कि वे अपनी चिंताओं और परेशानियों को खुलकर साझा कर सकते हैं. एक मजबूत संवाद और सहयोगात्मक माहौल बच्चों की मानसिक स्थिति को सुधारने और गंभीर परिणामों को रोकने में मदद कर सकता है.
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