यूक्रेन-रूस युद्ध में आम जनता मारी जा रही है. शायद दोनों देशों के नेताओं के सूझ बूझ में कहीं कोई कमी रह गई, जिसका खामियाजा इन देशों की जनता भुगत रही है.
यह भी सच है कि किसी भी देश के नेता द्वारा लिए गए निर्णय से वहां की आम जनता की पूरी तरह सहमति हो यह भी जरूरी नहीं है. बेगुनाह आम लोगों की मौत चाहे किसी भी देश में हो यह मानवता के खिलाफ है. इस युद्ध में मारे गए लोगों के प्रति तथा युद्ध की विभीषिका में फंसे लोगों की दिल दहला देने वाली चीख-पुकार सुनकर भी यदि किसी की इंसानियत न जागे तो यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है. मगर पिछले कुछ दिनों से यह देखने में मिल रहा है ऐसी दर्दनाक स्थिति के बावजूद युद्ध की विभीषिका को गंभीरता से न लेकर कुछ लोग मजाक बनाने में लगे हैं. आम लोगों के मौत के बीच इस तरह मजाक बनाना काफी शर्मनाक व इंसानियत को शर्मसार करने वाला है.
माना कि जीवन में हास परिहास जरूरी है मगर अपने जीवन में आनंद के लिए ऐसे विषयों को चुनना कतई उचित नहीं है. इन परिस्थितियों को देखकर लगभग 15 साल पूर्व लिखी मेरी यह स्वरचित पंक्तियां इंसानियत ढूंढ़ती अपनी सार्थकता साबित कर रही है.
'बेदर्द जहां में दर्द ढूंढ़ता हूं
इंसानियत का हो बसेरा
ऐसा वो घर ढूंढता हूं !!'
आओ हम सब यह प्रार्थना करें कि इस युद्ध पर शीघ्र विराम लगे और युद्ध की विभीषिका में फंसकर कठिन जीवन जीने मजबूर लोगों को राहत मिले.
-रोमशंकर
((Disclaimer: लेखक जाने-माने पत्रकार हैं. वे सोशल मीडिया पर बेबाकी से खुले खत लिखने के लिए भी जानें जाते हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह हैं. इसके लिए Newsbaji किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
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